शिव नगरी काशी के गंगा घाटों की महिमा न्यारी है, प्राचीन नगर काशी पूरे विश्व में सबसे पवित्र शहर है, धर्म एवं संस्कृति का केन्द्र बिन्दु है। असि से आदिकेशव तक घाट श्रृंखला में हर घाट के अलग ठाठ हैं, कहीं शिव गंगा में समाये हुये हैं तो किसी घाट की सीढ़ियां शास्त्रीय विधान में निर्मित हैं, कोई मन्दिर विशिष्ट स्थापत्य शैली में है तो किसी घाट की पहचान वहां स्थित महलों से है, किसी घाट पर मस्जिद है तो कई घाट मौज-मस्ती का केन्द्र हैं। ये घाट काशी के अमूल्य रत्न हैं, जिन्हें किसी जौहरी की आवश्यकता नहीं। गंगा केवल काशी में ही उत्तरवाहिनी हैं तथा शिव के त्रिशूल पर बसे काशी के लगभग सभी घाटों पर शिव स्वयं विराजमान हैं। विभिन्न शुभ अवसरों पर गंगापूजा के लिए इन घाटों को ही साक्षी बनाया जाता है। विभिन्न विख्यात संत महात्मा ने इन्हीं घाटों पर आश्रय लिया जिनमें तुलसीदास, रामानन्द, रविदास, तैलंगस्वामी, कुमारस्वामी प्रमुख हैं। विभिन्न राजाओं-महाराजाओं ने इन्हीं गंगा घाटों पर अपने महलों का निर्माण कराया एवं निवास किया। इन घाटों पर सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का समन्वय जीवन्त रूप में विद्यमान है। घाटों ने काशी की एक अलग छवि को जगजाहिर किया है; यहां होने वाले धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गंगा आरती, गंगा महोत्सव, देवदीपावली, नाग नथैया (कृष्ण लीला), बुढ़वा मंगल विश्वविख्यात है। काशी वासियें के लिये गंगा के घाट धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन, मौज-मस्ती के दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। घाट पर स्नान के पश्चात भांग-बूटी के मस्ती में डूबे साधु-सन्यासियों एवं यहां के निवासियों ने बनारसी-मस्ती के अद्भुत छवि का निर्माण किया है, जिसके अलग अंदाज को सम्पूर्ण विश्व देखना, समझना एवं जीना चाहता है।