काशी का इतिहास

वाराणसी का वास्तविक इतिहास शायद इतिहास के पन्नों से भी पुराना है। कहा जाता है कि वाराणसी विश्व के प्राचीन नगरों में से एक है। पुराणों के अनुसार मनु से 11वीं पीढ़ी के राजा काश के नाम पर काशी बसी। वहीं, वाराणसी नाम पड़ने के बारे में अथर्ववेद में वाराणसी को वरणावती नदी से सम्बन्धित कहा गया है। वरणा से ही वाराणसी शब्द बना है। कुछ वरुणा व अस्सी नदी के बीच बसने की वजह से दोनों नदियों के नाम पर इसे वाराणसी शब्द समझते हैं। काशी के पांच नाम प्रचलित रहे हैं। काशी, वाराणसी, अविमुक्त, आनंद-कानन और श्मशान या महाश्मशान। पुराणों और अन्य ग्रन्थों में इन नामों का उल्लेख है। प्रागैतिहासिक काल के वाराणसी के आस-पास कुछ जगहों पर प्रस्तर युग में प्रयोग किये जाने वाले औजार मिले हैं। जिससे पता चलता है कि वाराणसी व आस-पास प्रस्तर युगीन लोग भी रहते थे। आर्यों के आने के पहले वाराणसी व इसके आस-पास आदिवासियों का निवास रहा है। महाभारत (वनपर्व) में ही पहली बार वाराणसी का एक तीर्थ के रूप में उल्लेख हुआ। ईसा की तीसरी सदी से आगे वाराणसी का धार्मिक महत्व तेजी से बढ़ता गया। काशी को शिवपुरी कहा गया। पुराणों में काशी के कई राजाओं का उल्लेख है। धन्वंतरि के पौत्र दिवोदास हुए। दिवोदास के बाद वाराणसी का कई बार विध्वंस हुआ और इसे कई बार बसाया गया। अलर्क ने वाराणसी को पुनः बसाया। अलर्क दिवोदास का पौत्र था। जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ का जन्म यहीं हुआ था। खुदाई में मिले पुरावशेषों से पता चलता है कि ईसा पूर्व आठवीं सदी में ऊंचे स्थान पर वसाहत की शुरूआत हुई थी। राजघाट में उसी काल का मिट्टी का एक तटबंध भी मिला है जो गंगा की बाढ़ से बस्ती को बचाने के लिए बनाया गया था। काशी धार्मिक सांस्कृतिक और कला का केन्द्र रही है। धर्म के मामले में काशी हिन्दुओं की राजधानी रही है।

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