
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विजयानगरम् महाराज द्वारा घाट एवं घाट पर स्थित विशाल भवन का निर्माण करवाया गया, इस कारण इसे विजयानगरम घाट कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में महाराज द्वारा घाट स्थित भवन को काशी के संत स्वामी करपात्री जी को दान कर दिया गया, इसी भवन में ही करपात्री जी निवास करने लगे। वर्तमान में यह भवन स्वामी करपात्री आश्रम के नाम से प्रचलित है। घाट पर मोक्षलक्ष्मी मंदिर एवं शिव मन्दिर उन्नीसवीं शताब्दी से स्थापित हैं। घाट पक्का एवं स्वच्छ होने के कारण स्थानीय लोग यहाँ स्नान करते हैं। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।
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