रूईया संस्कृत पाठशाला अस्सी
संस्कृत भाषा आज भले ही युवाओं की पहली पसंद न हो लेकिन किसी जमाने में इस देव भाषा का काशी में सबसे उंचा स्थान था। संस्कृत पढ़ने वाले को सबसे श्रेष्ठ समझा जाता था। वहीं संस्कृत अध्यापकों का समाज में अलग महत्व था। संस्कृत शिक्षा के लिए काशी में कई उच्च स्तरीय पाठशालाएं एवं विद्यालय थे। जिसकी चौहद्दी में छात्रों को न केवल संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी बल्कि संस्कारवान भी बनाया जाता था। काशी में स्थापित उच्च स्तरीय संस्कृत पाठशालाओं एवं विद्यालयों में रूइया संस्कृत पाठशाला का बड़ा नाम था। इस पाठशाला से शिक्षा ग्रहण कर अनेकों लोग विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पदों पर आसीन हुए। समुचित शिक्षा एवं साफ-सुथरा माहौल और सुविधाएं इस पाठशाला को औरों से अलग करती थी। रूइया संस्कृत पाठशाला में न केवल बेहतरीन शिक्षक थे बल्कि सख्त अनुशासन भी था। जिससे छात्रों का बौद्धिक विकास तो होता ही था वह बेहद अनुशासित भी बनता था। इस पाठशाला की स्थापना आजादी के काफी पहले हुई। कहा जाता है कि मारवाड़ी सेठ जुगल किशोर रूईया एक बार काशी में पंचक्रोशी यात्रा करने आये। उन्हें यह शहर काफी अच्छा लगा। उन्होंने सन् 1892 में नेपाल के राजा से कुछ जमीन खरीद ली। इसी जमीन पर रूईया संस्कृत पाठशाला की स्थापना हुई। दो मंजिला पाठशाला एवं छात्रावास बनाया गया जिसके सामने एक बड़ा सा बागीचा था। इसी बागीचे में एक कुआं भी था। जिससे छात्रावास एवं पाठशाला में पानी की व्यवस्था की गयी थी। शुरू में इस पाठशाला में संस्कृत की प्राथमिक स्तर की शिक्षा दी जाती थी। लेकिन कुछ समय बाद यहां वेद व्याकरण की पढ़ाई भी होने लगी। बाद में क वर्गीय शास्त्री आचार्य की भी पढ़ाई हुई। इस पाठशाला में पढ़ने वाले कई विद्यार्थियों को वेद व्याकरण एवं साहित्य के लिए राष्ट्रपति एवं राज्यपाल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। देश के प्रसिद्ध प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी इस पाठशाला के छात्रावास में कुछ समय रूककर अध्ययन किया था। उस समय पाठशाला की ओर से ब्राह्मणों एवं गरीब बच्चों को भोजन कराया जाता था। अपने गौरवशाली इतिहास को लेकर आजादी के दूसरे दशक में यह पाठशाला हमेशा के लिए बंद हो गयी। हालांकि पाठशाला बंद होने के बाद भी कुछ समय तक छात्रावास में रहकर छात्र अध्ययन करते रहे। लेकिन सुविधाओं की कमी के चलते छात्रावास से भी छात्रो का मोहभंग हो गया। वर्तमान में यह पाठशाला बदहाली में पहुंच गया है। छात्रावास से लेकर पाठशाला की छतें एवं दीवारें खराब एवं जर्जर हो गयी हैं। लेकिन पाठशाला के भीतर जाने पर खराब अवस्था में भी यह देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। आज भी पाठशाला के भीतर मौजूद कुआं जस का तस है। इस पाठशाला परिसर में एक काफी पुराना गणेश मंदिर भी है। इस समय पाठशाला की देख-रेख प्रबंधक के रूप में अंजनी कुमार सिंह कर रहे हैं। इस पाठशाला की एक और खास बात थी कि पहले इसका मुख्य द्वार बागीचे की ओर था लेकिन वर्तमान में यह पीछे की तरफ हो गया है।