मुंशी प्रेमचन्द
प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 ई0 को काशी के निकट लमही ग्राम में हुआ था। पत्रकारिता की शुरूआत इन्हेंने सन् 1905 ई0 में ‘जमानाष् पत्रिका से की। कानपुर से छपने वाली इस पत्रिका में हकीम वरहम के उपन्यास ‘कृष्णकुँवरष् संबंधी प्रथम आलोचनात्मक निबन्ध के प्रकाशन के बाद तत्कालीन सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने पत्र के सम्पादन, टिप्पणी लेखन और अनुवाद इत्यादि कार्यों में भी प्रेमचन्द का सहयोग लेना पारंभ कर दिया। तत्पश्चात् 1923 ई0 में प्रेमचन्द ने कुछ समयावधि के लिए काशी से मर्यादा (मासिक) का प्रकाशन किया।
मार्च 1930 ई0 में ‘साहित्य और स्वदेश की सेवाष् जैसे आदर्श विचारधारा के साथ प्रेमचंद ने ‘हंसष् नामक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। काशी से प्रकाशित होने वाले इस साहित्यिक मासिक पत्र द्वारा प्रेमचन्द ने हिन्दी भाषा ही नहीं स्वतन्त्रता की भी लड़ाई लड़ी। हंस के प्रथम सम्पादकीय में ही पत्रनीति की घोषणा इस प्रकार हुई-
‘भारत ने शान्तिमय समर की भेरी बजा दी है, ‘हंसष् भी मानसरोवर की शान्ति छोड़कर, अपनी नन्हीं सी चोंच में चुटकी भर मिट्टी लिये समुद्र पाटने, आजादी के जंग में योग देने चला है।ष्
लगातार घाटे और 1930 ई0 में जमानत जब्त होने की घटना के बावजूद प्रेमचन्द ने हंस के उग्र रूख को बनाए रखा। सन् 1932 ई0 में इन्होंने ‘जागरणष् पत्र का प्रकाशन भी शुरू कर दिया। पत्रकारिता के क्षेत्र में बाधक तत्कालीन परिस्थितियों में इन पत्रों से प्रेमचन्द ने जिस आदर्श को स्थापित किया, वह सदा स्मरण किया जायेगा।
मदन मोहन मालवीय
मालवीय जी का जन्म 25 दिसम्बर 1861 ई0 को प्रयोग में हुआ था। इन्होंने कालाकांकर (प्रतापगढ़) के राजा रामपाल सिंह के आमंत्रण पर उनके पत्र ‘हिन्दोस्थान में 185 ई0 में बतौर सम्पादक पत्रकारिता जीवन की शुरूआत की और आपसी मतभेद के कारण 1888 ई0 में नौकरी छोड़ दी। तत्पश्चात् 1891 ई0 में ‘इण्डियन ओपीनियनष् पत्र का प्रकाशन किया। बिहार के सच्चिदानन्द सिन्हा द्वारा क्रमशः 1893 और 1903 ई0 में प्रकाशित ‘हिन्दुस्तान रिव्यूष् और ‘इण्डियन पीपिलष् में भी मालवीय जी का सहयोग था। 1907 ई0 में प्रयाग से मालवीय जी ने अभ्युदय तेजस्वी पत्र का प्रकाशन किया और इस साप्ताहिक पत्र के स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहे। 1909 ई0 में प्रयाग में ‘मालवीय शेष लीडरष् प्रकाशन हुआ। अनेक मित्रों के सहयोग से शुरू इस पत्र में मालवीय जी 20 वर्षों तक संपादक बने रहे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद काशी में रहते हुए 1933 ई0 में काशी से प्रकाशित होने वाले ‘सनातन धर्मष् साप्ताहिक पत्र के संरक्षक और संचालक की गुरूŸार भूमिका निभाना शुरू किया। मालवीय जी ने समय-समय पर अन्य पत्र संचालकों की भी सहायता की, उदाहरण के तौर पर 1909 ई0 में प्रयाग के स्वराज्य को आर्थिक मदद दी। इसके अतिरिक्त ‘भारतष्, ‘हिन्दुस्तानष्, ‘मर्यादाष् आदि पत्रों के मूल प्रेरणा स्रोत भी रहे।
कृष्णदेव प्रसाद गौड़ (बेढ़ब बनारसी)
बेढ़ब जी का जन्म सन् 1895 ई0 में हुआ। सन् 1930 ई0 में काशी से प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक पत्र ‘भूतष् में बेढ़ब संस्थापक सम्पादक रहे। बेढ़ब बनारसी हास्यव्यंग्य पत्रकारिता के बहुमूल्य निधि थे जिन्होंने काशी के रंग-तरंग को बखूबी जगजाहिर किया। इनके व्यंग्य लेखन में अगर चुभन का अहसास था तो दो पल में वह गुदगुदी भी पैदा कर देता था। ये 1934 ई0 में हास्य व्यंग्य पत्रिका ‘खुदा की राज परष् का सम्पादन प्रारंभ करने के साथ तरंग (हास्य व्यंग पत्र) और अन्य कई पत्रों के भी संपादक रहें वाराणसी से प्रकाशित दैनिक ‘आजष् में भी कई वर्षों तक बेढ़ब बनारसी ने हास्य व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी लेखन का कार्य किया। साथ ही डी0ए0वी0 इण्टर कॉलेज के प्रधानाचार्य पद के कर्तव्य का सफल निर्वाहन किया।
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्रष्
उग्र जी का जन्म 1900 ई0 में उŸार प्रदेश के मिर्जापुर में हुआ थ। ये मनोविनोदी होने के साथ-साथ पत्रकारिता के भी प्रेमी रहे व 1921 ई0 में काशी से ‘उग्रष् नामक पत्र का सम्पादन किया। तत्पश्चात् 1924 में प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र ‘भूतष् में प्रधान संपादक बालचन्द्र अष्ठाना के सहयोगी भूमिका में रहे। इसी वर्ष कलकŸाा में प्रकाशित ‘मतवालाष् पत्र में हास्य व्यंग्य की विशिष्ट स्तम्भ लेखन का कार्य शुरू किया। कुछ वर्षों बाद उग्र जी ने पुनः ‘उग्रष् पत्र का प्रकाशन शुरू किया। सन् 1942 ई0 में उज्जैन से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र ‘विक्रमष् और 1945 के उपरान्त 1948 ई0 में मिर्जापुर से ‘मतवालाष् का प्रकाशन प्रारंभ किया। फिर 1954 में दिल्ली से प्रकाशित ‘उग्रष् साप्ताहिक का सम्पादन किया। दिल्ली के ‘हिन्दी पंचष्, इन्दौर के ‘स्वराज्यष् तथा ‘वीणाष् और काशी की ‘खुदा की राहष् पत्रिका में भी इनका उल्लेखनीय सहयोग रहा। हिन्दी, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं के मर्मज्ञ उग्र जी का देहांत 1967 ई0 में हो गया।
रामचन्द्र वर्मा
जनवरी 1810 ई0 में काशी में जन्में श्री रामचन्द्र वर्मा के पत्रकार जीवन का प्रारम्भ नागपुर में प्रकाशित साप्ताहिक ‘हिन्द केसरीष् से 1907 ई0 में हुआ। तत्पश्चात् एक वर्ष तक ‘बिहार बन्धुष् के सहकारी सम्पादन कर 1913 ई0 से 1916 ई0 तक काशी से प्रकाशित ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिकाष् के भी सम्पादक रहे। प्रथम विश्वयुद्ध के समय दैनिक बने ‘भारत जीवनष् पत्र में इनका सम्पादन सहयोग रहा एवं बाबू रामकृष्ण वर्मा के मृत्यु के बाद ‘भारत जीवनष् के प्रधान सम्पादक रहे। रामचन्द्र वर्मा का निधन सन् 1961 ई0 को हुआ।
गंगाप्रसाद गुप्त
गुप्त जी के पत्रकार जीवन की शुरूआत सन् 1903 ई0 में काशी के प्रकाशित ‘मित्रष् नामक मासिक पत्र से हुआ था। यहीं से प्रकाशित ‘भारतजीवनष् (साप्ताहिक) के सम्पादकीय विभाग में 1904 ई0 में कार्य किया। तत्पश्चात् 1905 ई0 में काशी से प्रकाशित ‘इतिहास मालाष् (मासिक) और 1907 ई0 में नागपुर से प्रकाशित ‘हिन्द केसरीष् में प्रधान सम्पादक रहे। 1914 ई0 में स्वयं ही काशी से ‘हिन्द केसरीष् का संचालन किया। साथ ही ‘श्री वेकेंटश्वर समाचारष् (बम्बई) और ‘मारवाड़ी पत्रष् (नागपुर) में भी क्रमशः 1907 और 1909 ई0 में सहायक सम्पादक की भूमिका में रहे। काशी से प्रकाशित होने वाला ‘हिन्द केसरीष् इनके पत्रकार जीवन का अन्तिम पत्र रहा।
पं0 गंगाशंकर मिश्र
पं0 गंगाशंकर मिश्र का जन्म 1887 ई0 में हरदोई जिले के भगवन्त नगर में हुआ था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मास्टर्ज की शिक्षा के दौरान ही अभ्युदय में लिखना प्रारंभ कर दिया था। 1919 ई0 से लगभग 28 वर्षों तक कमच्छा स्थित तैलंग लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन पद पर कार्य करने के बाद इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सयाजी राव गायकवाड़ पुस्तकालय (सेन्ट्रल लाइब्रेरी) के ग्रन्थालयाध्यक्ष का पदभार संभाला। पुस्तकालय विज्ञान की विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण करने के बावजूद पंडित जी ने पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में सरल पद्धतियों का सूत्रपात किया। पं0 गंगाशंकर मिश्र को ‘मंडन मिश्रष्, ‘किताबी कीड़ाष् इत्यादि भिन्न-भिन्न नामों से भी जाना जाता है। ‘किताबी कीड़ाष् नाम से वे आहार-विहार, साफ-सफाई इत्यादि विषयों पर भी लिखा करते थे। भारतीय संस्कृति के विभिन्न विषयों पर ‘छानबीनष् नाम से ज्ञानमंडल यंत्रालय से प्रकाशित 14 खण्डों में विभक्त 280 लेखों का निबंध संग्रह उल्लेखनीय है। पंडित जी ने वाराणसी और कलकŸाा से प्रकाशित होने वाले ‘सन्मार्ग और ‘सिद्धान्तष् पत्रिका का संपादन किया।
मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव
25 अक्टूबर 1896 ई0 को मध्यप्रदेश के ग्राम और गौर झ्ाामर, जिला सागर में जन्में श्री मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव को काशी के पत्रकार परम्परा की श्रृंखला का सशक्त कड़ी माना जाता है। काशी से प्रकाशित दैनिक ‘आजष् पत्र से इन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरूआत की और फरवरी 1921 से जुलाई 1921 ई0 तक इसके सहायक सम्पादक रहे। सन् 1938 ई0 में ‘आजष् के साप्ताहिक अंक के प्रकाशन शुरू किये जाने पर विनोद शंकर व्यास के साथ मुंकदी लाल जी प्रधान सम्पादक नियुक्त हुए। लगभग 5 वर्षों तक इसमें कार्य करने के पश्चात वे 1943 ई0 में दैनिक पत्र ‘संसारष् में चले गये। इन दो प्रमुख हिन्दी पत्रों के साथ इन्होंने युगधारा (मासिक) और ज्ञानमण्डल यन्त्रालय से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र ‘स्वार्थष् का भी सम्पादन किया। 1984 ई0 में इनका निधन हुआ।
पण्डित माधव प्रसाद मिश्र
श्री माधव प्रसाद मिश्र का जन्म भाद्रशुक्ल 13 संवत् 1928 में पंजाब के हिसार जिले में भिवानी के पास कूंगड़ नामक ग्राम में हुआ था। सनातन धर्म के समर्थक पण्डित माधव प्रसाद मिश्र ने देवकीनन्दन खत्री की सहायता से जनवरी, सन् 1900 ई0 में काशी से ‘सुदर्शनष् नामक मासिक पत्रिका का प्राकाश्न प्रारंभ किया। इस पत्र का प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा और सनातन धर्म का प्रचार करना था। हिन्दी भाषा की प्रबल समर्थन के अतिरिक्त सुदर्शन में तत्कालीन पत्रकारिता एवम् स्वदेश प्रेम संबंधी कई लेख प्रकाशित हुए। जब महामना मालवीय जी ने छात्रों को राजनीतिक आन्दोलनों से दूर रहने की सलाह दी तब सुदर्शन में उनके नाम एक अत्यन्त शोभापूर्ण ‘खुली चिट्ठीष् छापी गई। मिश्र जी ने ‘सुदर्शनष् के अतिरिक्त ‘वैश्योपकारकष् का भी सम्पादन किया। लेकिन अर्थाभाव के कारण ‘सुदर्शनष् ढ़ाई वर्ष चलकर बन्द हो गया और ‘वैश्योपकारकष् भी लगभग दो वर्ष तक चला। 1994में प्लेग के कारण असमय मृत्यु के शिकार हो गये।
सम्पादकाचार्य लक्ष्मण नारायण गर्दे
गर्दे जी का जन्म सन् 1889 ई0 में महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। अपने पत्रकारिता जीवन की शुरूआत इन्होंने थाने के मराठी पत्र ‘हिन्दू पंचष् से की। तत्पश्चात् ‘वेंकेण्टेश्वर समाचारष् में कुछ ही दिनों तक काम करने के बाद ये काशी लौट आये। 1908 ई0 में पराड़कर जी की प्रेरणा से कलकŸाा के ‘हिन्दी बंगवासीष् से सम्पादकीय जीवन का प्रारम्भ किया और कुछ ही दिनों में ‘भारत मित्रष् के सहकारी सम्पादक नियुक्त हो गए। भारत मित्र में काम करते हुए गर्दे जी ने महाराष्ट्र रहस्य- लेखमाला चलायी व 1913 ई0 में गणपति कृष्ण गुर्जर के सहयोग से काशी में ‘नवनीतष् नामक पत्र का प्रकाशन किया। इस पत्र की विशिष्टता श्री सम्पूर्णानन्द, पं0 बनारसी दास चतुर्वेद, पण्डित रामनारायण, हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे विद्वानों के लेख का प्रकाशन था। सम्पूर्णानन्द जी का सबसे पहला लेख और पहले ग्रन्थ का कुछ भाग छापने का श्रेय नवनीत को ही जाता है। लेकिन अर्थाभाव के कारण ढाई वर्ष बाद इस पत्र को बन्द कर देना पड़ा।
सन् 1919 ई0 के लगभग गर्दे जी को ‘भारतमित्रष् के सम्पादकीय विभाग में शामिल किया गया और कुछ ही दिनों में प्रो0 प्रधान सम्पादक बन गये। इन्होंने सन् 1925 ई0 में कलकŸो से ‘श्रीकृष्ण संदेशष् (साप्ताहिक) का प्रकाशन किया और इसके बाद वे ‘विजयष् नामक पत्र के भी सम्पादक रहे। काशी से प्रकाशित दैनिक ‘सन्मार्गष् में ‘चक्रपाणीष् के नाम से लेखन कार्य किया। लखनऊ के ‘असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेडष् से प्रकाशित ‘नवजीवनष् गर्दे जी के जीवन का अंतिम पत्र था। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में श्री लक्ष्मी नारायण गर्दे का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उहाहरण के तौर पर 1915 ई0 में गांधीजी के काशी आगमन पर गर्दे जी ने भारत मित्र के विशिष्ट प्रतिनिधि की हैसियत से इण्टरव्यू लिया था। हिन्दी पत्रों में तथा पत्रकारिता में ‘इण्टरव्युष् (भेंटवार्ता) की आधुनिक पद्धति का प्रवर्तन और प्रचलन का श्रेय इन्हें ही जाता है। डॉ0 सम्पूर्णानन्द की पुस्तक ‘कर्मवीर गांधीष् को ‘ग्रन्थ प्रकाशित समिति की ओर से बतौर संस्थापक छपवाने की जिम्मेदारी मिलने पर इन्होंने ‘कर्मवीरष् हटाकर ‘महात्माष् शब्द रख दिया। यानि गांधी के साथ ‘महात्माष् शब्द जोड़ने का परोक्ष श्रेय गर्दे जी को है। कलकŸो से प्रकाशित होने वाले पत्र ‘विश्वमित्रष् और ‘विशाल भारतष् का नाम गर्दे जी ने ही रखा था। सन् 1960 ई0 में इनका देहांत हो गया।
गोविन्दशात्री ‘दुग्वेकर’
सागर (मध्य प्रदेश) के निवासी श्री गोविन्द शाóी ‘दुग्वेकरष् का जन्म 17 सितम्बर 1883 ई0 को हुआ था। अपने पत्रकार जीवन की शुरूआत इन्होंने 1905 ई0 में लोकमान्य तिलक के प्रेरणा से पूना के साप्ताहिक पत्रों ‘हिन्दूपंचष् एवम् ‘अरूणोदयष् के सम्पादन से की। 1908 में ‘अरूणोदयष् छोड़कर दुग्वेकर जी काशी चले आये और भारतेन्दु (मासिक) के सम्पादक नियुक्त हुए। इसके उपरान्त 1923 ई0 में यहीं से ‘भारतवर्षष् तथा ‘आर्य महिलाष् का सम्पादन किया। जबकि 1915 ई0 ‘निगमागम चन्द्रिकाष् और बालाबोध का भी सम्पादन किया। हिन्दू संस्कृति के कट्टर समर्थक के रूप में कई धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध रहने एवं संपादन करने के बाद 1931 ई0 में अन्तिम पत्रिका ‘गृहस्थष् (मासिक) की सम्पादन की और 26 जून 1931 को इनका निधन हो गया।
दुर्गाप्रसाद खत्री
गोस्वामी जी का जन्म जनवरी 1966 ई0 में उत्तर प्रदेश के वृन्दावन नामक स्थान पर हुआ था। इनके पत्रकार जीवन का प्रमुख क्षेत्र काशी ही रहा और 1817 ई0 में इन्होंने ‘उपन्यासष् पत्रिका का प्रकाशन कर हिन्दी में कथा पत्रकारिता की शैली प्रारम्भ की। 1906 ई0 में काशी से प्रकाशित होने वाले ‘बाल प्रभाकरष् का भी सम्पादन किया। इससे पूर्व 1900 ई0 में नागरी प्रचारिणी सभा के अनुमोदन में 3 वर्षों तक सरस्वती के प्रकाशन के समय इसके पांच सम्पादकों से एक रहे। 1932 ई0 में गोस्वामी जी का निधन हो गया।
रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर
खाडिलकर जी का जन्म 1 अप्रैल 1914 ई0 को महाराष्ट्र प्रान्त में हुआ था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी0एस0सी0 परीक्षा उŸाीर्ण करने के बाद सन् 1935 ई0 में ‘आजष् में कार्यरत हुए। पूर्व में विभिन्न मराठी पत्रों में लेखन के पश्चात् सन् 1936 ई0 में ‘आजष् के सम्पादकीय विभाग में शामिल होना महाराष्ट्रीय खाडिलकर जी के कृतित्व के उज्जवल पक्ष को उजागर करता है। जुलाई 1937 ई0 में कुछ महीनों के लिए ‘आजष् से इनका सम्बन्ध विच्छेद हो गया था। 1942 ई0 में ‘आजष् का प्रकाशन कुछ काल के लिए स्थगित करदिये जाने पर खाडिलकर जी का सम्बनध ‘आजष् से पुनः छूट गया तथा सितम्बर 1942 ई0 में काशी से प्रकाशित दैनिक पत्र ‘खबरष् के प्रधान सम्पादक नियुक्त हुए। ‘खबरष् के संचालकों द्वारा 1943 ई0 में प्रकाशित दैनिक ‘संसारष् में सह सम्पादक नियुक्त हुए। इसी वर्ष अक्टूबर में ‘संसारष् के साप्ताहिक संस्करण का बम्बई से प्रकाशन प्रारम्भ होने पर इन्हें बम्बई जाना पड़ा और 1994 तक ये पत्र के सम्पादक तथा प्रेस मैनेजर के पद पर कार्य करते रहे। 1914 के अगस्त माह में ‘संसारष् द्वारा ही संचालित लखनऊ से प्रकाशित ‘अधिकारष् पत्र में डेढ़ वर्ष सम्पादन के बाद 1946 में पुनः ‘संसारष् में इनका आगमन हुआ। सितम्बर 1947 ई0 में लखनऊ के ‘नवजीवनष् पत्र में लक्ष्मण नारायण गर्दे जी के नेतृत्व में उपसम्पादक पद संभाला और1948 ई0 में पुनः ‘आजष् में उप सम्पादक हो गये। सन् 1955 में पराकडकर जी के मृत्यु के बाद इन्हें स्थानापन्न सम्पादक की भूमिका भी निभानी पड़ी एवम् 1956 की फरवरी माह में ‘आजष् के प्रधान सम्पादक तथा ज्ञानमण्डलसंस्थान बोर्डस ऑफ डाइरेक्टर्स के सदस्य बनाये गये। 1957 में ज्ञानमण्डल लिमिटेड के अध्यक्ष बन जाने के बाद अपने कार्यक्षेत्र में विस्तार करते हुए ‘आजष् में नये-नये और लोकप्रिय स्तम्भ निकाला और ‘आजष् को भारत का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी दैनिक बनाने का प्रयन्त किया। इससे पूर्व 25 मार्च 1942 से ‘आजष् में पहले पृष्ठ पर बिना डबल कालम के मेकअप करने का श्रेय इन्हें ही जाता है। सम्पादकीय प्रतिभा के गुणी खाडिलकर जी का निधन 25 फरवरी 1960 ई0 को हुआ।
पं0 रघुनंदन प्रसाद शुक्ल ‘अटलष्
अटल जी का जन्म संवत् 1960 की गोपाष्टमी के दिन काशी में श्री गोविन्द प्रसद शुक्ल के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। धनाभाव के कारण वाराणसी के हरिश्चन्द्र कालेज से 10वीं कख उŸाीर्ण करने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा संचालित हिन्दू स्कूल की इण्टरमीडिएट कक्षा में प्रवेश लेने पर भी अटल जी को पढाई छोड़नी पड़ी। लेकिन अपने अल्प स्वाध्याय एवं भाषिक कौशल के बल पर इन्होंने बेबई के ‘वेंकटेश्वर समाचारष् दैनिक के सम्पादकीय विभाग में स्थान पा लिया। संस्कृत, हिन्दी, गुजराती अन्य कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता अटल जी को अपनी बीमारी के कारण पत्र के प्रमुख संपादक का पद अस्वीकार कर काशी लौटना पड़ा। स्वस्थ होते ही ये तत्कालीन प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक ‘आजष् के सम्पादकीय विभाग में आ गये, जहां इन्होंने बाबू राव विष्णु पराड़कर और पंडित कमला पति त्रिपाठी जैसे विख्यात सम्पादकों के वरिष्ठ सहयोगी के रूप में कार्य किया। पराड़कर जी के संसारष् के संपादक बनने पर अटल जी उनके सबसे भारेसेमंद सहयोगी के रूप में साथ गये। तत्पश्चात् अटल जी ने ‘पंडितष् पत्रिका का सम्पादन किया। वही स्वामी करपात्री जी के धर्मसंर्घ के दैनिक पत्र ‘सन्मार्गष् के काशी, कलकŸाा और दिल्ली संस्करणों की सफलतापूर्वक स्थापना का श्रेय इन्हें ही जाता है। नागरी प्रचारिणी सभा के हिन्दी विश्वकोश और सांगवेद विद्यालय के महत्वपूर्ण ग्रन्थों के सम्पादन के अतिरिक्त अटल जी ने हिन्दी, संस्कृत और उर्दू में कई कविताएँ, निबंध और कहानियाँ लिखीं। गीवार्ण वाग्वर्धिनी सभा (काशी) द्वारा अपनी स्वर्ण जयन्ती पर द्वितीय महायुद्ध से घिरे विश्व में शान्ति के प्रचार प्रसार के लिए तैयार मराठी ग्रन्थ के हिन्दी अनुवाद का कार्य अटल जी को ही सौंपा गया था एवं इस अनुवाद को शान्ति के अग्रदूतष् नाम से जाना जाता है। अटल जी द्वारा रचित ‘वरंगरप की रानीष् (वीररस का लघु खण्ड काव्य), ‘शिव संकीर्तनष् (शिव विषयक आख्यानों पर आधारित कविताओं का संग्रह) और श्री भगवत हिन्दी का पद्यात्मक विशाल काव्य 1964 की गणना साहित्य की कालजयी कृतियों में होती है। इसके अतिरिक्त नाट्य्ाशाó, अभिनय कला और संगीत-नृत्य शाó के क्षेत्र में अटल जी का योगदान ठोरा और चिरास्थायी है।
अक्टूबर 1965 ई0 में गले के कैंसर से अल्पायु में इनकी मृत्यु हो गयी।
मनोरंजन कांजिलाल
कांजिलाल जी का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को बंगाल (अब बंगला देश) के जैसोर के छोटे से गांव में हुआ था। व्यंग चित्रकार कांजीलाल का पत्रकार जीवन कलकŸाा में निकाले जा रहे बाबू जगदम्बा प्रसाद गुप्त के मासिक पत्र ‘सज्जनष् से शुरू हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय कलकत्ता में बम वर्षा होने पर ये काशी आकर बय गये और सिनेमा के बैनर, पोस्टर बनाकर जीवन यापन करना शुरू किया। 1943 ई0 में दैनिक ‘संसारष् (काशी) के प्रकाशन शुरू होने पर कांजिलाल जी ने कार्टूननिस्ट के रूप में अपनी पहचान बनाई। ‘दादाष् के नाम से इन्होंने ‘संसारष् के बाद ‘आजष् दैनिक में प्रवेश लिया और इस प्रमुख दैनिक पत्र में लगभग 32 वर्ष तक बने रहे। 1981 ई0 में काशी से ‘दैनिक जागरणष् के प्रकाशन होने पर कांजिलाल उसमें चले गये और जीवन के अन्त समय तक वही कार्य किया। इन्होंने जीवन्त प्रखर व्यंग चित्रकार के रूप में देशभर में ख्याति अर्जित की। 19 दिसंबर 1985 ई0 को 74 वर्ष की उम्र में इनका निधन हो गया।
विद्याभास्कर
विद्याभास्कर जी का जन्म 28 जून 1913 ई0 को हुआ था। इनके पिता आदिमूर्ति अपने समय के प्रतिष्ठित तमिल कवि व साहित्यकार थे एवम् रंगून में ‘तमित्व दैनिकष् पत्र का प्रकाशन व संपादन किया था। इन्होंने अपने पत्रकार जीवन की शुरूआत 1930-31 ई0 में एसोसिसटेड प्रेसष् के संवादाता के रूप में किया जबकि इनका प्रथम लेख 1927 ई0 में ‘सरस्वतीष् में प्रकाशित हुआ था। तत्पश्चात ये अग्रगामीष् में सहायक संपादक और बाद में संपादक बने। 1934 ई0 में लगभग एक वर्ष तक पटना से प्रकाशित ‘आर्यावर्तष् के स्थानीय संपादक रहने के बाद पटना से ही निकलने वाले ‘राष्ट्रवाणीष् अखबार के संपादक पद का दायित्व संभाला। सन् 1942 में विद्याभास्कर के संपादकत्व में काशी से ‘आजष् का पुनः प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन् 1945 में ‘आजष् से त्याग पत्र देकर वे जबलपुर के ‘जयहिन्दष् दैनिक के संपउदन विभाग से खुले एवम् 1946 ई0 में संयुक्त प्रान्त सरकार के निमंत्रण पर सूचना विभाग में हिन्दी पत्रकारिता विभाग के अधिकारी नियुक्त हुए। 1950 ई0 में इलाहाबाद से ‘अमृत पत्रिकाष् के प्रकाशन होने पर विद्याभास्करजी इसके संपादक बनाये गये तथा 1951 में इसके प्रकाशन बन्द होने पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन और हिन्दुस्तान आकादमी में कार्य किया। सितम्बर 1966 ई0 में वे ‘आजष् वाराणसी से जुड़े और 1983 तक कार्य किया। ‘आजष् में ये ‘राष्ट्रभक्तष् नाम से ‘अपना भारतष् नामक स्तम्भ से लिखा करते थे। साथ ही उन्होंने शेरशाह सूरी की जीवनी और ‘राजा भोज की कहानियाँ जैसी उल्लेखनीय कृतियां रची। ये उŸार प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। 19 दिसम्बर 1984 ई0 को इनका निधन हो गया।
रमापति राय शर्मा
रमापति राय शर्मा का जन्म 1907 ई0 में हुआ था। इनके पिता का नाम यमुना राय था। सिकन्दरपुर (बलिया) के करमौता गांव के मूल निवासी शर्मा जी की शिक्षा-दीक्षा बंगाल में हुई। इनके पत्रकार जीवन की शुरूआत कलकŸाा से प्रकाशित होने वाले पत्र ‘विश्वमित्रष् से हुई। हिन्दी, अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान रमापति राय शर्मा वाराणसी से प्रकाशित होने वाले ‘आजष्, ‘गांडीवष् और लखनऊ के नवजीवन में भी कार्यरत रहे। इनका निधन 19 जुलाई 1974 ई0 को हुआ।
कमला प्रसाद अवस्थी ‘अशोकष्
पं0 कमला प्रसाद अवस्थी का जन्म 1 दिसम्बर 1914 को काशी के टेढ़ीनीम में हुआ था। इनके पिता माता का नाम सुदर्शन अवस्थी और सिद्धेश्वरी देवी था। 1936 ई0 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी0ए0 और बी0टी0 की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने ‘गीताधर्मष् (मासिक) काशी से सहायक संपादक का कार्य आरंभ किया। 1938 ई0 में साप्ताहिक ‘स्वदेशष् (गोरखपुर) के प्रबंध संपादक के बाद 1939 ई0 में दैनिक ‘अग्रगामीष् (वाराणसी) के सम्पादक मण्डल में शामिल हुए जहां 1940 तक कार्य किया। 1943 ई0 में आज में वरिष्ठ उपसम्पादक और 1944-45 ई0 में दैनिक ‘संसारष् में वरिष्ठ संपादक का कार्यभार संभाला। अवस्थी जी ‘सन्मार्गष् दैनिक में संयुक्त संपादक रहे। बंगाली टोला हाईस्कूल में अध्यापक अवस्थी जी 1941-43 तक गोमती विद्यालय फूलपुर (इलाहाबाद) में प्रधानाध्यापक भी रहे। तत्पश्चात् प्रयाग से प्रकाशित ‘अमृत पत्रिकाष् और भारत में 1950-60 तक मुख्य सहायक सम्पादक का कार्यभार संभाला। 1961 से पुनः दैनिक ‘आजष् में सहायक सम्पादक के रूप में कार्य किया एवं 1978 ई0 से दैनिक ‘गांडीवष् में अनुबन्धित समाचार सम्पादक बने। इन्हेंने संस्कृत निष्ठ हिन्दी पर अच्छी पकड़ रखते हुए 1972 ई0 में दुर्गा सप्तमी का पद्यानुवाद किया। इनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ कविता संग्रह ‘अशोक मंजरीष् (1936 ई0) राग-विराग (1952 ई0) एवम् निबन्ध संग्रह ‘काव्यदीष् है। पत्र-पत्रिकाओं में उल्लेखनीय लेखन के योगदान हेतु अवस्थी जी को (1992 ई0 में) उŸार प्रदेश सरकार द्वारा एवम् ‘जनमाध्यमष् संस्थाओं सहित अन्य संस्थाओं ने सम्मानित किया। इनकी मृत्यु 5 मई 1998 ई0 को हुई।
पं0 कमलापति त्रिपाठी
पण्डित कमलापति त्रिपाठी का जन्म 3 सितम्बर 1905 ई0 को काशी में हुआ था। इन्होंने अपने सम्पादकीय जीवन की शुरूआत 1934 ई0 में ‘आजष् से दैनिक से की। सन् 1943 ई0 में ‘आजष् छोड़ने के बाद ‘संसारष् के प्रधान सम्पादक बने। तत्पश्चात् 1943 से 1952 ई0 तक काशी से प्रकाशित होने वाले पत्रों ‘ग्रामसंसारष् ‘आंधीष् ‘युगधाराष् आदि के संपादन का कार्य करने वाले त्रिपाठी जी की रूचि पत्रकारिता की रूचि पत्रकारिता के साथ राजनीतिक में भी रही और उŸार प्रदेश के मंत्री, मुख्यमंत्री, रेलवे मंत्री, सहित देश के अन्य कई महत्वपूर्ण पदों को इन्होने सुशोभित किया। इन्होने राजनीति, पत्रकारिता आदि विषयों पर विभिन्न विचारोŸोजक लेखों के साथ कई पुस्तके भी लिखी हैं।
पं0 देवनारायण द्विवेदी
द्विवेदी जी का जन्म 1886 ई0 में उŸार प्रदेश के मिर्जापुर जिले के ग्राम भईंसा में हुआ था। इनके पिता पं0 रामप्रसद द्विवेदी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। द्विवेदी जी का प्रारंभिक कार्य क्षेत्र कोलकाता था। जहां इन्होंने प्रसिद्ध नाट्य्ा संस्था ‘हिन्दी नाट्य्ा परिषदष् की स्थापना की। ‘काशी समाचारष् के प्रधान संपादक की भूमिका के अतिरिक्त द्विवेदी जी ने ‘कर्तव्याधातष् ‘प्रणयष्, ‘पश्चातापष्, ‘दहेजष् आदि अनेक मौलिक हिन्दी उपन्यासों की रचना की। साथ ही बंगला भाषा पर अच्छी पकड़ होने के कारण प्रसिद्ध बंगाल विद्वानों रवीन्द्रनाथ टैगोर के गोरा, मिलन मंदिर एवम् योगीराज अरविन्द घोष की धर्म और जातीयता, गीता की भूमिका, अरविन्द मन्दिर तथा शरत साहित्य का हिन्दी में भावात्मक अनुवाद किया है। रवीन्द्र ठाकुर की गीतांजलि का हिन्दी रूपान्तरण इनकी अ˜ुत काव्य प्रतिभा का प्रमाण है। द्विवेदी जी ने इसके अतिरिक्त रामचरित मानस, विनय पत्रिका, कवितावली, हनुमानबाहुक की व्याख्या सहित ठीका की रचना की।
पं0 देवनारायण द्विवेदी अपनी पुस्तकों ‘देश की बातष् (1923 ई0), ‘किसान सुख साधनष् के कारण अंग्रेजी सरकार के आंख की किरकिरी बन गये और इन पुस्तकों को जब्त कर ली गयी। यही नहीं, इनके संपादकत्व में वाराणसी से प्रकाशित होने वाले ‘काशी समाचारष् पत्र को पराधीनता युग का निष्पक्ष राष्ट्रीय पत्र होने से कागज का कोटा नहीं दिया गया था। ज्ञानमंडल लिमिटेड वाराणसी में अपने अध्यक्षता काल में द्विवेदी जी ने हिन्दी कोश, वांग्मार्जन (संस्कृत कोश), हिन्दी साहित्य कोश (दो भागों में), भाषा, विज्ञान कोश, अशोक के अभिलेख आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित कराये।
पं0 देवनारायण द्विवेदी जी को बैरिस्टर युसुफ इमाम, मतवाला संपादक महादेव प्रसाद सेठ तथा जे0एन0 विल्सन के बाद कांग्रेस का चौथा मार्गदर्शक (डिक्टेटर) चुना गया था। स्वाधीनता संग्राम में बनाई गई बार कौंसिल में भी इन्हें स्थान मिला। ये अखिल भारतीय प्रकाशक एवं लेखक संघ के दो बार अध्यक्ष चुने गये थे। 28 नवम्बर 1989 ई0 में इनकी निधन हो गयी।
आचार्य पं0 सीताराम चतुर्वेदी
पण्डित सीताराम चतुर्वेदी का जन्म 27 फरवरी 1907 ई0 को छोटी पियरी (वाराणसी) में हुआ था। इनके पिता पं0 भीमसेन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या एवं पौरोहित्य विभाग के अध्यक्ष थे। इन्हेंने मुजफ्फरनगर से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी, संस्कृत, पालि तथा प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में स्नातकोŸार तथा बीटी0, एल0एल0बी0, साहित्याचार्य की उपाधि हासिल की। ये हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, पालि, प्राकृत तथा अपभंश भाषा एवं ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि प्राचीन भारतीय लिपियों के जानकार थे।
पण्डित सीताराम जी ने सेन्ट्रल हिन्दू, स्कूल, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 1932-38 ई0 तक अध्यापन किया और प्राध्यापक भी रहे। 1932-34 तथा 1952-53 तक भगवानदीन साहित्य विद्यालय काशी के आचार्य, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय काशी के संस्थापक अध्यक्ष (1942-44 ई0), सतीशचन्द्र कालेज बलिया के प्राचार्य (1948-1949 ई0), टाउन डिग्री कॉलेज बलिया के प्राचार्य (1957 से 1968 ई0) तथा बिनानी विद्या मन्दिर कलकŸाा के निदेशक (1962-1964 ई0) भी रहे।
पण्डित जी ने 1927-28 ई0 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रकाशित ‘डानष् (अंग्रेजी) पत्र का सम्पादन किया। तत्पश्चात् 1930-32 ई0 में भूमिगत समाचार पत्र ‘रणभेरीष्, ‘शंखनादष् के संपादन व लेखन, एवम् काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रकाशित साप्ताहिक ‘सनातन धर्मष् का संपादन (1933-38 ई0) किया। 1947-1949 ई0 तक बम्बई से ‘भारत विद्याष्, 1948 में प्रतिभा (मासिक), 1949 ई0 में ‘संग्रामष् (साप्ताहिक) एवं काशी से मासिक पत्र वासंती (1955-1959 ई0 तक) तथा कलकŸाा के संकल्प का 1962-63 ई0 में सम्पादन किया।
पण्डित जी ने शिक्षा, साहित्य, दर्शन, इतिहास योग, राजनीति आदि लगभग सभी क्षेत्रों में 214 ग्रंथ एवं 85 नाटक-नाटिकाओं का लेखन व मंचन किया। मालवीय जीवन चरित, अभिनव नाट्य्ा शाó, समीक्षा शाó, साहित्यानुशासन तन्त्र विज्ञान और साधना, वाग्विज्ञान, भारतीय और पाश्चात्य रंगमंच, कालिदास ग्रन्थावली (सटीक), तुलसी ग्रन्थावली (टीका सहित), सूर ग्रन्थावली (सटीक), वाल्मीकीय रामायण (सटीक), इनकी प्रमुख कृतियाँ है। ठेठ टकसाली नागरी के एकमात्र लेखक पण्डित सीताराम जी ने हिन्दी साहित्य के एकमात्र चम्पू ‘श्रीराम विजयष् की रचना की। पण्डित जी को हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा 2003 में साहित्य वाचस्पति, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 1999 में हिन्दी गौरव तथा कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा 2003 ई0 में मानद डी0 लिट् की उपाधि मिली। 17 फरवरी 2005 को इनका निधन हो गया।
पं0 दिनेशदत्त झा
झा जी का जन्म 13 अक्टूबर 1883 ई0 को भागलपुर (बिहार) के बरारी मुहल्ले में मातुल के घर हुआ था। एवम् उनका पितृस्थान पूर्णिया जिले के सदर थाने का जाफरपुर गांव (वर्तमान रायपुर) था। 1911-17 ई0 तक बिहार में रेलवे की नौकरी करने के पश्चात् इन्होंने कलकŸाा के दैकिन ‘समाचारष् में काम शुरू किया लेकिन पश्चिम बंगाल सचिवालय में काम मिल जाने के ‘समाचारष् छोड़ दिया। कुछ समय बाद ही ये रामपुर लौट आए और भागलपुर से 1921 ई0 में ‘शांतिष् नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। दो माह की बाद ही यह पत्रिका बंद हो गयी और पण्डित जी में काशी आकर 16 अगस्त 1921 ई0 से ‘आजष् में संपादकीय विभाग में नौकरी शुरू की। पारिवारिक कारणों से कुछ माह की अनुपलब्धता के बाद इन्होंने 10 अप्रैल 1923 ई0 को ‘आजष् में पुनः प्रवेश लिया और 1940 ई0 तक संपादकीय विभाग में रिपोर्टर। डाक संपादक और प्रबंध संपादक का कार्य करते रहे। 14 मार्च 1940 ई0 अप्रैल 1944 तक बिहार के दैनिक ‘आर्यावर्तष् के संपादक पद पर कार्य करने के बाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन प्रारंभ किया। शुद्धता के प्रबल समर्थक थे। संस्कृति निष्ठ हिन्दी व व्याकरण के बहुत बड़े कायल झ्ाा जी को प्रूफ संशोधन में मामूली त्रूटि भी खटकती थी। ‘आर्यावर्तष् के माध्यम से हिन्दुस्तानी भाषा के विरोध करते हुए उन्होंने बिहार सरकार को इस भाषानीति को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। हिन्दी के ऐसे प्रबल पक्षधर विद्वान झ्ाा जी का निधन 8 दिसंबर 1961 ई0 को काशी में हुआ।
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