काशी के ज्योतिषी
सर्वविद्या की राजधानी काशी में ज्योतिष परंपरा भी काफी पहले से ही समृद्ध और सुदृढ़ रही है। काशी के ज्योतिषियों की गणना बेहद सटीक रहती है। ज्योतिष विद्या पर काशी के विद्वानों का एकाधिकार रहा है। यहां के ज्योतिषियों की ज्योतिषी वा पर ऐसी पकड़ रही है कि दूर-दूर से लोग यहां के विद्वानों की मदद लेने आते रहे हैं। ज्योतिषियों की ख्याति भी काशी की सीमाओं को पार कर पूरे भारत में रही है। नक्षत्रों की गणना के जरिये भविष्यवाणियां करने वाले ज्योतिषी का बहुत मान सम्मान था। प्रस्तुत है काशी के मूर्धन्य ज्योतिषियों पर रिपोर्ट –
1- मकरन्द – काशी के ज्योतिष परंपरा के समृद्ध संवाहकों में पहला नाम मकरंद का आता है। लगभग 13वीं ई0 और 14वीं के शुरूआत में इन्होंने ग्रह-नक्षत्रों की चाल पर अध्ययन के बाद सूर्य सिद्धान्त के अनुसार अपने ही नाम यानी ‘मकरंद’ नाम के ग्रन्थ का प्रकाशन किया। इस ग्रन्थ में ग्रह नक्षत्रों की सारणी का विधिवत वर्णन है। इस सारणी के आधार पर ही काशी पंचांग प्रकाशित होते है। इस सारणी में दिनमान, स्थिर योग व मान, करण और मान, चरयोग, अंग्रेजी, हिजरी, सौर तिथियों का पूरा विवरण दिया है। मकरंद ने ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में काफी नाम अर्जित किया।
2- अनन्त दैवज्ञ – काशी की ज्योतिष परपरंपरा एक नाम है। अनन्त दैवज्ञ का। इन्होंने ज्योतिष को समृद्ध करने में महती भूमिका निभाई। ज्योतिष विद्या में अपने ज्ञान के आधार पर इन्होंने ‘जातक पद्धति’ और ‘कामधेनु गणित टीका’ की रचना की।
3- नीलकण्ठ दैवज्ञ – अनन्त दैवज्ञ के पुत्र नीलकण्ठ दैवज्ञ भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए ज्योतिष विद्या में पारंगत हुए। ये अकबर के दरबार के बड़े ही विद्वान पण्डित थे। ज्योतिष शात्र में तो इन्हें गर्गाचार्य कहा जाता था। इनकी प्रसिद्ध रचना ‘ताजिक नीलकण्ठी’ है।
4- राम दैवज्ञ – अनन्त दैवज्ञ के ही दूसरे पुत्र रामदैवज्ञ हुए। अपने पिता भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए इन्होंने भी ज्योतिष शात्र में प्रकाण्डता हासिल की। इनकी प्रसिद्ध रचना ‘मुहूर्त चिन्तामणि’ काफी प्रसिद्ध हुई। यह पुस्तक ज्योतिषियों के अलावा आम लोग जो ज्योतिष का कम ज्ञान भी रखते हैं। इस ग्रन्थ की रचना राम दैवज्ञ ने 16 सौ ई0 में की थी। इन्होंने एक और ग्रन्थ ‘रामविनोद’ भी लिखा यह ग्रन्थ पंचांग निर्माण में काफी मदद करता है। ज्योतिष विद्या में इन्हें ज्ञान था।
5- पं0 बापूदेव शात्री – काशी यानी विद्वानों का गढ़ रहा हैं यहां हर विद्या के मनीषी रहे हैं। जिन्होंने अपनी विद्वता के बल पर ख्याति अर्जित की। काशी की ज्योतिष परंपरा में पं0 बापूदेव शात्री का नाम भी अग्रणी रहा है। इनका जन्म 1821 ई0 में हुआ था। गहन अध्ययन के बाद उन्होंने संस्कृत पाठशाला में अध्यापन शुरू किया और वहीं से सेवानिवृत्त हुए। ज्योतिष पर इनकी गहरी पकड़ थी। इन्होंने ‘सिद्धान्तशिरोमणि’ की गणितांध्यापक गोलाध्याय और लीलावती ग्रन्थ की टीका प्रकाशित करवायी। इनकी विद्वता को देखते हुए इन्हें सम्मानित भी किया गया। ब्रिटिश सरकर ने इनकी क्षमता और ज्ञान के लिए 1887 ई0 में ‘महामहोपाध्याय’ की उपाधि से नवाजा। इन्हें इतनी प्रिय थी कि कश्मीर के महाराज के कश्मीर बुलाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। शात्री जी ने जीवन पर्यन्त ज्योतिष समेत अंग्रेजी विज्ञान विषय को समृद्ध करने में लगे रहे।
6- पण्डित सुधाकर द्विवेदी – काशी के ज्योतिषियों में पण्डित सुधाकर द्विवेदी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। ज्योंतिष को पुष्ट करने में इनका अहम योगदान रहा है। ज्योतिष के क्षेत्र में ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले पंडित सुधाकर द्विवेदी का जन्म 1860 में कचहरी के पास खजुरी मुहल्ले में हुआ था। कहा जाता है कि ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ पंडित सुधाकर द्विवेदी की प्रतिभा बचपन से ही दिखने लगी थी। गणित ज्योतिष में तो पंडित जी को महारथ हासिल था इन्होंने पंचागसिद्धान्त का (वाराहमिहिर) ब्रह्मस्फूटसिद्धान्त लीलावती बीजगणित सूर्यसिद्धान्त टीका की रचना की। मान मंदिर स्थित वेधशाला इन्हीं के नाम पर है। पण्डित सुधाकर द्विवेदी ने हिन्दी में ‘चलन-कलन’ चलराशि कलन’ और समीकरण मीमांसा जैसे ग्रन्थों की रचना की।
7- पण्डित रामयत्न ओझा – पण्डित रामयत्न ओझा भी ज्योतिष के बड़े विद्वान थे। ज्योतिष का अध्ययन इन्होंने पण्डित सुधाकर द्विवेदी से किया था जबकि फलित ज्योतिष पण्डित अयोध्यानाथ शर्मा से ग्रहण किया था। ज्योतिष के क्षेत्र में इनके योगदान और विद्वता से प्रभावित होकर पं0 मदन मोहन मालवीय ने इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया। इन्हेंने ‘फलित विकास’ ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ कुण्डलियों के अध्ययन में बहुत सहायता प्रदान करता है। ज्योतिष परम्परा के इस विद्वान ने 1938 में चिरनिद्रा में चला गया।
8- श्री बबुआ ज्योतिषी – ज्योतिषी विद्या के प्रमुख विद्वान श्री बबुआ ज्योतिषी भी रहे। इन्हें ज्योतिष का बहुत ज्ञान था। इनके द्वारा बताये यात्रा मुहूर्त बहुत सटीक एवं मंगलकारी होते थे। एक बार इन्होंने नेपाल नरेश को जनरल जेलर को मात देने का मुहूर्त बताया जो बिल्कुल सही साबित हुआ। इसके बाद नेपाल के महाराजा इनकी विद्वता से काफी प्रभावित हुए। नेपाल में श्री बबुआ ज्योतिषी का काफी मान-सम्मान था। काशी के विद्वानों में इनका प्रमुख स्थान रहा है।
9- पण्डित केदार दत्त जोशी – महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में जन्में पण्डित केदार दŸा जोशी सर्वविद्या की राजधानी काशी में अध्ययन के लिए 1926 में आये। कुछ वर्षों के बाद 1938 में पण्डित मदन मोहन मालवीय ने इनकी विद्वता को देखकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या एवं धर्म विज्ञान संकाय में ज्योतिष को पढ़ाने के लिए नियुक्त किया ज्योतिष में कुण्डली, ग्रह नक्षत्रों चाल, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण के लगने से पड़ने वाले प्रभावों का आकलन ज्योतिष के जरिये बड़ी सरलता से करते थे। इन्हेंने ज्योतिष के सम्यक ज्ञान के आधार पर इस विषय से सम्बन्धित कई पुस्तकों का संपादन, टीका और अनुवाद लिखा।
10- प्रो0 रामचन्द्र पाण्डेय – प्रो0 रामचन्द्र पाण्डेय का जन्म 1941 में वाराणसी के धौरहरा गांव में हुआ था। इनके पिता पण्डित बलदेव पाण्डेय ज्योतिष के विद्वान थे। अपने पिता से प्रभावित होकर रामचन्द्र पाण्डेय ने भी ज्योतिष का अध्ययन शुरू कर दिया। इन्होंने ज्योतिष को गहराई से जानने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की। अध्ययन के दौरान प्रो0 पाण्डेय ने ज्योतिष को बड़ी ही बारीकी से समझ्ाा वहीं, काशी नरेश के कहने पर ज्योतिष शाó के संहिता स्कन्ध का प्रायोगिक अध्ययन किया। ज्योतिष शाó पर गहरी पकड़ होने के साथ प्रो0 पाण्डेय ने सिद्धान्त और फलित ज्योतिष में पीएचडी किया। तत्पश्चात् काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए नियुक्त हुए बाद में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष बने। ज्योतिष पर इनकी पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व पंचांग का करीब 12 वर्षों तक संपादन किया।
11- दुर्गाशंकर पाठक – काशी में ज्योतिषियों की परंपरा में दुर्गाशंकर पाठक का नाम भी प्रमुख रहा है। इन्होंने ज्योतिष में बहुत ख्याति अर्जित की। कुण्डली बनाने में तो दुर्गाशंकर पाठक सिद्धहस्त थे। कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र नौनिहाल सिंह की कुण्डली बनाने पर 1 लाख मुद्रा भेंट स्वरूप मिली थी। ज्योतिष विद्या में इन्हें उच्चकोटि का ज्ञान था।
12- पण्डित ऋषिकेश उपाध्याय – पण्डित ऋषिकेश उपाध्याय काशी की ज्योतिष परम्परा के आधुनिक कर्ताधर्ता रहे हैं। इन्होंने काशी में पंचांग को सुव्यवस्थित ढंग से संपादित किया। इनका जन्म भदैनी मुहल्ले में हुआ था। उपाध्याय जी में गणितीय ज्योतिष और ज्योतिष के फलित विद्या दोनों का भरपूर ज्ञान था। इन्होंने ज्योतिष परम्परा को नया आयाम दिया।