वाराणसी को यूं ही लघु भारत होने का गौरव प्राप्त नहीं है। बल्कि इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि इस शहर में भारत की विभिन्न संस्कृतियां, सभ्याताएं एवं प्रसिद्ध मंदिरों की प्रतिमूर्ति की झलक मिलती है। शायद ही कोई दूसरा ऐसा शहर हो जहां उस शहर के अलावा दूसरे शहर की छाप महसूस की जा सके। लेकिन बनारस इस मामले में समग्रता लिए हुए है। यह प्रचीन शहर अपने अस्तित्व के साथ पूरे भारत की तस्वीर बयां करता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि बनारस ऐसा गुलदस्ता है जिसमें हर रंग के फूल लगे हुए हैं। यही इसकी सबसे बड़ी विशिष्टता है। जो इस अद्भुत क्षेत्र को सदियों से नवीन बनाये हुए है। यही कारण है कि देश-विदेश से आने वाले ज्यादातर पर्यटक इसे एक बार में देखकर अघाते नहीं। मन को असीम शांति देने वाली चकाचौंध लिए यह शहर कभी भी उदास या हताश नहीं होता बल्कि सदैव प्रफुल्लित रहता है। बात मंदिरों की जाये तो वाराणसी को मंदिरों का शहर कहा ही जाता है। क्योंकि इस शहर में मंदिरों की संख्या बहुत अधिक है। यहां देश के द्वादश ज्योतिर्लिंग की प्रतिमूर्ति के अलावा उड़ीसा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर को भी देखा जा सकता है। काशी के अस्सी क्षेत्र में जगन्नाथ मंदिर लगभग दो सौ वर्ष से भी प्रचीन है। यह मंदिर उड़ीसा के मुख्य जगन्नाथ मंदिर सा प्रतीत होता है। मंदिर की स्थापत्य कला सहित अन्य कई समानतायें मुख्य जगन्नाथ मंदिर जैसी हैं। इस मंदिर में चार द्वार बनाये गये हैं। पहले द्वार से मंदिर की दूरी करीब तीन सौ मीटर से ज्यादा है। सभी द्वार एक सीध में हैं। पहले द्वार से ही ध्यान से देखने पर मंदिर में स्थापित जगन्नाथ जी, सुभद्रा एवं बलराम की मूर्ति दिखायी देती है। मंदिर से एक द्वार के पहले एक छोटा सा कुण्ड भी है। इस मंदिर में जगन्नाथ जी, सुभद्रा एवं बलराम की मूर्ति है। प्रत्येक वर्ष वाराणसी में भी जगन्नाथ जी की रथयात्रा धूमधाम से निकाली जाती है। इस दौरान मंदिर में कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। जो लोग किसी कारणवश उड़ीसा के मुख्य जगन्नाथ जी मंदिर दर्शन-पूजन के लिए नहीं जा पाते उनके लिए काशी में यह मंदिर अच्छा विकल्प है। यह मंदिर दर्शनार्थियों के लिए प्रातःकाल 5 से दोपहर 12 बजे तक एवं सायं 3 से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में आरती प्रातः साढ़े 7 बजे एवं शयन आरती रात्रि 9 बजे सम्पन्न होती है। यह मंदिर अस्सी चौराहे से अस्सी घाट की ओर बढ़ने पर दाहिनी ओर है।