काशी की गलियाँ
अद्भुत है इसकी बनावट/यह आधा जल में है/आधा मंत्र में/आधा फूल में/आधा शव में/आधा नींद में/आधा शंख में/अगर ध्यान से देखो/तो यह आधा है/और आधा नहीं।
– केदारनाथ सिंह
यहाँ प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों? जवाब है- ‘‘काशी की संस्कृति जो बहुसांस्कृतिकता का जीवन्त उदाहरण है। इस दृष्टिकोण से काशी की गलियों का अध्ययन करने के नेपथ्य में तीन कारण हैं-
1. मनुष्य की जड़ें एक संस्कृति विशेष में निहित होती हैं जो मूलतः उसी से नियंत्रित होती हैं।
2. भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ अच्छे जीवन के अर्थ व दृष्टि को भिन्न-भिन्न रूपों से व्यक्त करती हैं।
3. प्रत्येक संस्कृति आन्तरिक रूप से विविधताओं से पूर्ण और अपनी अनेक परम्पराओं व विचार पद्धतियों में सतत संवाद को दर्शाती है।
उपर्युक्त तीनों गुणों का प्रभाव किसी धार्मिक नगरी के रहन-सहन और स्वरूप पर अवश्य पड़ता है।
उदाहरण के लिए 18वीं शताब्दी के अन्त और 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बनारस का भौतिक पुनरुत्थान इसके वास्तुशिल्प से स्पष्ट झ्ालकता है, चाहे यहाँ के धार्मिक भवन हों या सार्वजनिक भवन हों या गलियाँ हो, सब में पुनर्जागरण का पुट दिखाई देता है।
अर्धचन्द्राकार गंगा के तट पर बसे बनारस की सभ्यता के विकास की कहानी वैदिक युगीन है। धर्म के आश्रय में गंगा की गोद में स्नान का लाभ एवं जीवन की मुक्ति से प्रेरित होकर जनता से स्वयं अपने सुविधानुसार शरण योग्य निवास का निर्माण किया और धीरे-धीरे आबादी के घनत्व ने गलियों को जन्म दिया। भवनों के जाल में गलियाँ अपने आप ही बन गईं। यह किसी की खोज नहीं, किसी व्यवस्था का परिणाम नहीं अपितु समुदाय की व्यवस्था का परिणाम है। जो कालांतर में राजा दिवोदास के काशी की पहचान बनी।
अब जरा इतिहास भूगोल से परे इन गलियों की विशेषताओं का भी वर्णन किया जाय तो स्थिति कुछ इस तरह होगी-
गलियों बीच काशी है, कि काशी बीच गलियाँ।
कि काशी ही गली है, कि गलियों की ही काशी है।।
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। परन्तु जिस प्रकार मनुष्य किसी न किसी शब्द और रुप द्वारा हर विषय-वस्तु को नाम अवश्य देता है उसी प्रकार काशी-वासी इसे ‘‘गलियों का शहर’’ कहते हैं और हम यह सच है या झ्ाूठ इस प्रश्न के चक्कर में न पड़े तो ही अच्छा है। हम सभी इसे ‘‘गलियों का शहर’’ मान ही लें नहीं तो जो हश्र दुःशासन का हुआ वही शायद हमारा भी हो, क्योंकि बड़े से बड़े पुरनियों (खांटी बनारसी) व्यक्ति से भी अगर पूछा जाता है कि आप बनारस की पूरी गलियों को जानते हैं तो वे भी अपना उŸार नकारात्मक ही देते हैं। उŸार होता है- ‘‘नाहीं, हमहूँ कहाँ ठीक से जानत बायी’’।
जब बड़े से बड़े वरिष्ठ इस प्रश्न पर गरिष्ठ हो जाते हैं तो हमारी क्या औकात।
काशी की गलियों का उ˜व घाटों के निर्माण काल से ही शुरू होता है। डॉ0 मोतीचन्द के अनुसार सन् 1432 तक काशी के प्रमुख घाट बनकर तैयार हो चुके थे। इसके पश्चात् ही काशी में गलियों का उ˜व और नामकरण किया जाने लगा।
आज से चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व गंगा किनारे केवल घाट और मंदिर थे। सन् 1825 में जेम्स पिं्रसेप के सुझ्ााव पर एक मजबूत बाँध बनाया गया। इस बाँध के निर्माण के बाद ही गंगा समीप बस्ती उभरने लगी और मुहल्ले बसने लगे। सन् 1785 में अहिल्या बाई ने विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद ही विश्वनाथ गली का जन्म हुआ। काशी की कुछ प्रमुख गलियाँ इस प्रकार हैं-
1. विश्वनाथ गली-
काशी नगरी के हृदय में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर के प्रांगण में स्वयं भगवान शंकर ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ऐसी मान्यता है कि विश्वनाथ जी के दर्शन से सभी द्वाद्वश ज्योर्तिलिंगों के दर्शन का फल मिलता है। विश्वनाथ जी के नाम पर ही इस गली का नाम विश्वनाथ गली पड़ा। यह काशी की सबसे प्रसिद्ध गली है। यह गली, ज्ञानवापी, चौक से शुरू होकर विश्वनाथ मंदिर होते हुये दशाश्वमेध घाट तक जाती है। विश्वनाथ गली व्यावसायिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस गली में कपड़े, श्रृंगार के सामान तथा लकड़ी के बने खिलौने मिलते हैं जो पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हैं।
2. कचौड़ी गली
यह गली विश्वनाथ गली के ठीक पीछे स्थित है। इस गली की विशेषता यह है कि यहाँ पर स्थित अधिकांश दुकानें कचौड़ी की हैं। इसी कारण गली का नाम कचौड़ी गली पड़ा। यहाँ दुकानें सुबह से ही खुल जाती हैं तथा बारह बजे रात तक खुली रहती हैं। दुकानदारों में ऐसी मान्यता है कि उनके दुकानों पर भगवान शिव के गण स्वयं कचौड़ी तथा मिठाई खाने आते हैं। यहाँ पर कचौड़ी खाने वालों की भीड़ सुबह सात बजे से शुरू हो जाती है जो कि रात तक जारी रहती है। यह गली भी विश्वनाथ गली की ही तरह घाट के पास निकलती है। इस गली में कचौड़ी के अलावा पौराणिक किताबों, ग्रन्थों तथा बही खातों की दुकानें भी हैं।
3. खोवा गली-
जैसा की नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि ‘‘खोवा गली’’ अर्थात् इस गली में खोवा की बहुत बड़ी मण्डी लगती है। खोवा की इतनी बड़ी मण्डी शायद ही भारत के किसी शहर में लगती हो। इसी कारण से इस गली का नाम खोवा गली पड़ गया।
4. ठठेरी (बाजार) गली-
यह गली चौक क्षेत्र में स्थित है। इस गली में पहले ठठेरा लोग रहते थे जो बर्तन इत्यादि का निर्माण किया करते थे। आज भी इस गली में पीतल के बर्तन बनते और बिकते हैं। पीतल के बर्तन व उससे बने सामानों का सबसे बड़ा बाजार इस गली में है। गली में अन्दर जाकर भारत के युग निर्माता तथा प्रसिद्ध कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का निवास तथा उससे कुछ दूरी पर अग्रसेन महाजनी पाठशाला है।
5. दालमण्डी गली-
यह गली काशी के दो महत्वपूर्ण बाजार चौक तथा नई सड़क को आपस में जोड़ती है। इस गली में कपड़े-जूते-चप्पल तथा इलेक्ट्रानिक्स की दुकानें तथा श्रृंगार की वस्तुएँ थोक में मिलती हैं। राजाओं-महाराजाओं के समय में इस गली में नृत्यांगनायें रहा करती थीं जिनके यहाँ नृत्य, संगीत का आनन्द लेने के लिये नगर के धन्ना सेठ जाया करते थे। लखनऊ की प्रसिद्ध नृत्यांगना उमराव-जान लखनऊ छोड़कर दालमण्डी में बस गयीं थीं, उनका अन्तिम समय यहीं व्यतीत हुआ। काशी में ही उनकी कब्र आज भी स्थित है।
6. नारियल (बाजार) गली-
यह गली चौक थाना के ठीक पीछे है जो दालमण्डी गली में आकर मिलती है। इस गली में नारियल, विवाह से सम्बन्धित सामान बिकते हैं। नारियल की बड़ी मण्डी होने के कारण इस गली का नाम नारियल बाजार पड़ा।
7. घुंघरानी गली-
यह गली दालमण्डी से निकली है तथा दालमण्डी और काशी के मुख्य बाजार बाँसफाटक को आपस में जोड़ती है। इस गली में भी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकानें हैं।
8. गोविन्दपुरा गली-
यह गली चौक क्षेत्र में है तथा चौक मजार से पहले अवस्थित है। इसमें सोने-चाँदी के आभूषण, रत्न इत्यादि की दुकानें हैं। यह गली चौक, नारियल बाजार, रेशम कटरा को आपस में जोड़ती है।
9. रेशम कटरा गली-
यह गली गोविन्दपुरा गली की मुख्य शाखा है। इसमें भी सोने-चाँदी के आभूषण की दुकाने हैं। यहाँ सोने-चाँदी के आभूषणों का निर्माण किया जाता है।
10. विन्ध्यवासिनी गली-
इस गली को विन्ध्याचल की गली भी कहा जाता है। इस गली में विन्ध्याचल माता का मंदिर है जो मिर्जापुर में स्थित विन्ध्याचल मंदिर की प्रतिमा का प्रतिरूप है। इस कारण मंदिर को विन्ध्वासिनी मंदिर कहा जाता है जिसके नाम पर इस गली का नाम विन्ध्यवासिनी गली पड़ा। यह गली काशीपुरा क्षेत्र से शुरू होती है तथा रेशम कटरा में जाकर मिलती है।
11. कालभैरव गली-
यह गली विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में है। यह भैरोनाथ चौराहा से आरम्भ होकर कालभैरव मंदिर तक फैली है। कालभैरव जी काशी के कोतवाल हैं जो भगवान शंकर के प्रधान सेनापति हैं। ऐसी मान्यता है कि काशी में कोई व्यक्ति तभी निवास कर सकता है जब कालभैरव जी की अनुमति मिलती है। कालभैरव जी के नाम पर इस गली का नाम कालभैरव गली पड़ा। यहाँ स्थित मोहल्ले का नाम भैरवनाथ है।
12. भूतही इमिली की गली-
यह गली मैदागिनी क्षेत्र में स्थित टाउनहाल मैदान के पीछे है। यह मालवीय मार्केट से आरम्भ होकर भैरोनाथ क्षेत्र तक जाती है। कहा जाता है कि इस गली में इमली का पेड़ था जिस पर भूत तथा चुड़ैल निवास करती थी जिसकी वजह से लोग इधर से गुजरने में डरते थे। परन्तु अब ऐसी कोई बात नहीं है। किन्तु पहले जो नाम था वही आज भी है।
13. सप्तसागर गली-
यह गली मैदागिन क्षेत्र में है तथा टाउनहाल मैदान के गेट के ठीक सामने से शुरू होती है तथा नखास की ओर निकलती है। इस गली में पूर्वांचल की सबसे बड़ी दवा मण्डी है।
14. आसभैरव गली-
यह गली नीचीबाग क्षेत्र में है। आस-भैरव के मन्दिर के नाम पर इस गली का नाम आसभैरव गली पड़ा। इस गली में सिक्खों का पवित्र गुरुद्वारा स्थित है।
15. कर्णघंटा गली-
यह गली कर्णघंटा क्षेत्र में पड़ती है। कर्णघंटा से शुरू होकर रेशम कटरा तक जाती है। यहीं पर विन्ध्यवासिनी गली भी आकर मिलती है। कर्णघंटा क्षेत्र में छपाई व कागज सम्बन्धित सभी सामानों का बहुत बड़ा मार्केट है।
16. गोला दीनानाथ गली-
गोला दीनानाथ गली में पूर्वांचल की सबसे बड़ी मसाले की मण्डी है। यह कबीरचौरा क्षेत्र में स्थित है। इस मण्डी में भगवान दीनानाथ का मन्दिर होने से इसका नाम गोला दीनानाथ पड़ा तथा इस मण्डी में आने वाली सभी गलियों को गोला दीनानाथ की गली के नाम से जाना जाता है। इस मण्डी के चारों तरफ गलियाँ हैं।
17. गोपाल मंदिर की गली-
यह गली बुलानाला क्षेत्र से प्रारम्भ होकर गोपाल मंदिर तक जाती है। इस मन्दिर में गोपाल जी की अष्टधातु निर्मित प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रतिमा की पूजा महारानी कुन्ती करती थीं। यह प्रतिमा महारानी कुन्ती द्वारा स्थापित की गई है। जन्माष्टमी के समय इस मन्दिर तथा गली को दुल्हन की भाँति सजाया जाता है।
18. पत्थर गली-
काशी में पत्थर की गली दो क्षेत्र में है। एक जतनबर की पत्थर गली तथा दूसरी चौक क्षेत्र की पत्थर गली। चौक क्षेत्र की पत्थर गली में सभी मकान पत्थर के थे, इसलिये उसका नाम पत्थर गली पड़ा तथा जतनबर की पत्थर गली में पत्थर का गेट बना था जिसके कारण उसका नाम पत्थर गली पड़ा। अब पत्थर का गेट नहीं है।
19. हनुमान गली-
यह गली हनुमान घाट से प्रारम्भ होकर अस्सी तथा गोदौलिया मार्ग को आपस में जोड़ती है। हनुमान घाट के निर्माण के साथ ही इस गली का निर्माण हुआ। हनुमान घाट के नाम पर गली का नाम हनुमान गली पड़ा।
20. तुलसी गली-
यह गली अस्सी क्षेत्र में पड़ती है। गोस्वामी तुलसीदास के नाम पर इस गली का नाम तुलसी गली पड़ा। गोस्वामी तुलसीदास जी की मृत्यु इसी गली में हुई थी।
21. गुदड़ी गली-
इस गली में ‘‘बड़ा गुदड़ जी’’ तथा ‘‘छोटा गूदड़ जी’’ के नाम के दो प्रसिद्ध अखाड़े थे। इनका निर्माण अट्टारहवीं शताब्दीं में हा था। ये अखाड़े आज भी वहाँ पर अवस्थित है। इन्हीं अखाड़ों के नाम पर ही इसका नाम गुदड़ी गली पड़ा। यह गली तुलसी गली से ही निकली है।
22. शिवाला गली-
यह गली शिवाला घाट से आरम्भ होती है तथा शिवाला घाट को मुख्य मार्ग से जोड़ती है। शिवाला घाट के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम शिवाला पड़ गया तथा इस गली का नाम शिवाला गली पड़ा।
23. खिड़की गली-
यह गली खिड़की घाट से प्रारम्भ होती है। खिड़की घाट का निर्माण बैजनाथ मिश्र ने करवाया था। यह घाट लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। अतः गली भी उतनी ही पुरानी है।
24. जुआड़ी गली-
ऐसा कहा जाता है कि प्रसिद्ध जुआड़ी नन्द दास ने जुए की एक दिन की कमाई से इसे बनवाया था। इसलिये इस गली का नाम जुआड़ी गली पड़ा। यह गली अब विलुप्त हो चुकी है।
25. ढुंढीराज गली-
यह गली चौक क्षेत्र के ज्ञानवापी से आरम्भ होती है तथा दण्डपाणि भैरव मन्दिर तक जाती है। इस गली में गणेश जी का मन्दिर है जो गणनाथ विनायक के नाम से जाने जाते है।
26. संकठा गली-
यह गली संकठा घाट से आरम्भ होती है। गली में संकठा देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जिसका निर्माण गोहनाबाई ने करवाया था। संकठा देवी नाम पर ही गली का नाम संकठा गली पड़ा तथा घाट का नाम संकठा घाट पड़ा। संकठा देवी के मन्दिर के बगल में ही कात्यायनी देवी का भी मन्दिर है। यह गली विश्वनाथ गली से आकर मिलती है।
27. पशुपतेश्वर गली-
यह गली चौक क्षेत्र से आरम्भ होकर रामघाट तक जाती है। इस गली में पशुपतेश्वर महादेव का मन्दिर है। उन्हीं के नाम पर इस गली का नाम पशुपतेश्वर गली पड़ा।
28. पंचगंगा गली-
पंचगंगा घाट के नाम पर इस गली का नाम पंचगंगा गली पड़ा। ऐसी मान्यता है कि पंचगंगा घाट पर पाँच नदियों का संगम होता है। गंगा, जमुना, सरस्वती के अलावा दो नदियाँ ‘‘सुकिरणा’’ जो भगवान सूर्य की प्रतिमा से निकलती है तथा ‘‘धूतपापा’’ जो घाट पर ही जमीन से निकली है। पाँच नदियों के संगम के कारण इस घाट का नाम पंचगंगा घाट पड़ा। ऐसा पुराणों में वर्णित है कि स्वयं तीर्थराज प्रयाग गंगा दशहरा के दिन अपने पाप धोने इसी घाट पर आते हैं। यही गली पंचगंगा घाट से आरम्भ होकर ब्रह्माघाट, दुर्गाघाट, राजमन्दिर, गायघाट, त्रिलोचन घाट, प्रहलाद घाट की गलियों को आपस में जोड़ती है। यह गली बहुत बड़ी तथा प्रसिद्ध है।
29. चौरस्ता गली-
यह गली गायघाट से प्रारम्भ होती है और त्रिलोचन घाट, तेलियानाला होते हुये चौखम्भा तक जाती है। चौखम्भा में बीबी हटिया की पतली गली में मिलती है।
30. नेपाली गली-
सुप्रसिद्ध नेपाली मन्दिर के नाम पर ही इस गली का नाम नेपाली गली पड़ा। यह विश्वनाथ गली तथा ललिता घाट को आपस में जोड़ती है। नेपाली मन्दिर के नाम पर ही इस मोहल्ले का नाम नेपाली खपड़ा पड़ा।
31. सिद्धमाता गली-
यह गली मैदागिन क्षेत्र के गोलघर में स्थित है। यह गोलघर को बुलानाला मुख्य मार्ग से जोड़ती है। इस गली में सिद्धमाता देवी का मन्दिर है।
32. कामेश्वर महादेव गली-
यह गली मच्छोदरी पर बिड़ला हॉस्पिटल के सामने से प्रारम्भ होती है जो कामेश्वर महादेव मन्दिर तक जाती है।
33. त्रिलोचन महादेव गली-
यह गली गायघाट से प्रारम्भ होकर त्रिलोचन महादेव मन्दिर तक जाती है तथा कामेश्वर महादेव गली से आपस में मिलती है।
34. पाटन दरवाजा गली-
यह गली गायघाट से शुरू होकर बद्री नारायण घाट तक जाती है।
35. भार्गव भूषण प्रेस वाली गली-
मच्छोदरी स्थित भार्गव भूषण प्रेस को मच्छोदरी मुख्य मार्ग से जोड़ती है। इसलिए इस गली को भार्गव भूषण प्रेस वाली गली कहते हैं।
36. लट्ट गली-
यह गली जतनबर में स्थित है तथा गणेश गली को आपस में जोड़ती है।
37. नइचाबेन गली-
यह गली कोयला बाजार से प्रारम्भ होकर बहेलिया टोला तक जाती है।
38. नचनी कुआँ गली-
यह गली भी कोयला बाजार से प्रारम्भ होकर भदऊ चुँगी तक जाती है।
39. चित्रघंटा गली-
यह गली चौक क्षेत्र से प्रारम्भ होकर रानी कुआँ तक जाती है तथा इस गली में चित्रघंटा माता का मन्दिर स्थित है।
40. गढ़वासी टोला गली-
यह गली चौखम्भा से प्रारम्भ होकर संकठा की गली में जाकर मिलती है।
41. भारद्वाजी टोला गली-
यह गली प्रहलाद घाट से प्रारम्भ होकर भदऊ चुँगी तक जाती है।
42. हाथी गली-
यह गली बीबी हटिया की गली से प्रारम्भ होकर दादुल चौक होते हुए ब्रह्मा घाट तक जाती है।
43. कातरा गली-
यह गली राजमन्दिर क्षेत्र में पड़ती है। यह अत्यन्त छोटी गली है इस गली में केवल 4 से 5 मकान ही पड़ते हैं। यह गली एक तरफ से बन्द है।
44. चौखम्भा गली-
यह गली चौखम्भा क्षेत्र से शुरू होकर ठठेरी बाजार की गली में आकर मिलती है।
45. सुग्गा गली-
सुग्गा गली ठठेरी बाजार से प्रारम्भ होकर रानी कुआँ तक जाती है। इस गली पर सिन्नी टुल्लु का पहला कारखाना था।
46. गोला गली-
ठठेरी बाजार स्थित भारतेन्दु भवन के पीछे की गली को गोला गली के नाम से जाना जाता है। यह गली ठठेरी बाजार की मुख्य गली से निकली है।
47. ननपटिया गली-
नन अर्थात छोटी जाति के लोग इस गली में रस्सी तथा जूट से बने बोरे की सिलाई करते हैं जिसके कारण इस गली को ननपटिया गली कहते हैं। यह गली विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में पड़ती है।
48. नरहर पुरा गली-
नरहेश्वर महादेव के नाम पर इस गली का नाम नरहर पुरा गली पड़ा। यह गली डी0ए0वी0 रोड से प्रारम्भ होकर नरहरेश्वर महादेव मन्दिर तक जाती है। विवादित होने की वजह से इस मन्दिर को बन्द कर दिया गया है। यह अब श्री शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल में स्थित है।
49. अगस्त कुण्डा गली-
यह गली गौदोलिया तांगा स्टैण्ड के पास से प्रारम्भ होकर दशाश्वमेध घाट तक जाती है।
50. मीरघाट गली-
यह गली मीरघाट से प्रारम्भ होकर दशाश्वमेध तक जाती है।
51. मणिकर्णिका गली-
यह गली मणिकर्णिका घाट से प्रारम्भ होकर कचौड़ी गली में आकर मिलती है। इसके अलावा इस गली की अन्य शाखायें सिंधिया घाट तथा दशाश्वमेध घाट तक जाती हैं। ऐसा कथानक है कि शिवजी जब माता सती को लेकर इधर से गुजरे तो उनके कान की मणि इस घाट पर गिर पड़ी थी। जिस कारण इस घाट का नाम मणिकर्णिका और गली का नाम मणिकर्णिका गली पड़ी।
52. शवशिवा काली गली-
यह गली सोनारपुरा में स्थित बंगाली टोला इण्टर कालेज के सामने से प्रारम्भ होती है तथा पाण्डेय घाट तक जाती है। इसी गली में ‘‘शव शिवा काली’’ जी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
53. बड़ा गणेश वाली गली-
यह गली लोहटिया क्षेत्र से प्रारम्भ होकर बड़ा गणेश मन्दिर तक जाती है। इस गली में गणेश जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। उन्हें दंत हस्त विनायक या बड़ा गणेश के नाम से जाना जाता है। उन्हीं के नाम पर इस मोहल्ले का नाम बड़ा गणेश पड़ा। इस गली की अन्य शाखायें नवापुरा होते हुए दारानगर तथा हरिश्चन्द्र इण्टर कालेज के पीछे से होते हुए हरिश्चन्द्र डिग्री कालेज तक जाती है।
54. कुंज गली-
कुंज गली रानी कुआँ से प्रारम्भ होकर कचौड़ी गली में जाकर मिलती है। इस गली में विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ियों की गद्दियाँ हैं।
55. भूलेटन गली-
यह गली भूलेटन क्षेत्र से प्रारम्भ होकर दालमण्डी की गली से होते हुए घुघरानी गली के प्रारम्भ पर जाकर मिलती है।
काशी में कुछ गलियों के नाम काशी के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम पर भी रखे गये हैं उदाहरण-
लाल संड की गली, लाला सूर की गली, गोयनका गली, सेवा चौधरी गली, नन्दन साहू लेन, गणेश दीक्षित लेन, ग्वाल दास साहू लेन, कूचा हाजीदरस।
इन गलियों के अलावा जानवरों के नाम पर भी गलियाँ हैं-
चूहा गली, हाथी गली इसके अलावा-ऊँचवा गली, सूत टोला गली, बंगाली बाड़ा, शीतला गली, गणेश गली, काठ गली, दूध विनायक गली, नीलकण्ठ गली, राजमन्दिर गली, हौज कटोरा, बुचई गली इत्यादि प्रमुख गलियाँ हैं।
इन गलियों में जन्तर-मन्तर भी है, भूल-भुलैया भी है, रस भी है, अलंकार भी। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि जो गली आपको अपने घर पहुँचाती है वहीं गली श्मशान तक भी ले जाती है। कुछ गलियाँ ऐसी हैं कि आगे जाने पर मालूम होता है लेकिन गली के छोर के पास पहुँचने पर देखेंगे कि बगल से एक पतली गली सड़क से जा मिली है और कुछ गलियाँ ऐसी हैं जिनसे बाहर निकलने के लिये किसी दरवाजे या मेहराबदार चौखट के भीतर से गुजरना पड़ता है। अलंकारों की बात करें तो यहाँ सर्वत्र भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण मिलते हैं-
इहाँ उहाँ दुई गलियन देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।।
देखि गली हमहूँ अकुलानी। बनारसी देखि मधुर मुसकानी।।
इन गलियों से गुजरते समय जहाँ चूके तुरन्त ही दूसरी गली में आ पहुचेंगे क्योंकि यहाँ कोई निशान या साइनबोर्ड लगा नहीं मिलेगा। नतीजा यह होगा कि काफी दूर आगे जाने पर रास्ता बन्द मिलेगा। कभी-कभी तो तुरन्त सड़क आ सकती है। यदि रास्ता भूल गये तो उन्हीं गलियों में कई घंटे तक घूमते रहेंगे। आपकी इस दुविधा का आनन्द वहाँ के क्षेत्रीय बनारसी लेते हैं और आपकी ओर वे इस तरह देखेंगे कि यह इधर बन्द गली में कहाँ जा रहा है नतीजा आपको पुनः उसी गली तक वापस आना होगा जहाँ से आप भ्रमित होकर भटक गये थे। कई गलियाँ तो अपने नाम और रूप से इतनी भयानक होती हैं कि भयानक और शांत रस दोनों का एक साथ मजा देती है।
आपको जिस गली में इमली के बीज बिखरे मिलें समझ्ा लें इस गली में मद्रासी रहते हैं। जिस गली में मछली महकती हो वहाँ बंगालियों का मोहल्ला है। जिस मे हड्डी लुढ़की मिले समझिये मुसलमानी इलाका है। इस प्रकार हर गली की अपनी पहचान है, इतना पकवान है बस पारखी नजर आपके पास होनी चाहिए। इन अद्भुत गलियों के अद्भुत नाम भी हैं यथा-
दस पुतरिया गली, भण्डारी गली, चूहा गली, ऊंचवा गली, दादुल गली, नारायण दीक्षित लेन, सूतटोला, ढुनमुन पंडा गली, रतन फाटक गली, बंगाली बाड़ा, भाट गली, गणेश दीक्षित लेन, पाटन गली, संतोषी माता गली, राजराजेश्वरी गली, पाण्डेय गली, केदार गली, मिसिर गली, कोहराने गली, सोना साव वाली गली, बीबी हटिया गली, दलहट्टा गली, दण्डपाणि गली।
इन सभी गलियों में आपको विश्व के सभी जाति धर्म के लोग तो मिलेंगे ही साथ ही विश्व का ऐसा कोई व्यवसाय या सामान नहीं हो सकता जो न मिल सके। इसलिए डॉ0 रामअवतार पाण्डेय जी कहते हैं-
वरूणा और अस्सी के भीतर है, अनुपम विस्तार बनारस।
विविध धर्म भाषा-भाषी, रहते ज्यों परिवार बनारस।।
जिसकी गली-गली में बसता है, सारा संसार बनारस।
एक बार जो आ बस जाता, कहता इसे हमार बनारस।।
‘‘हरिअनन्त हरिकथा अनन्ता’’ की भाँति काशी की गलियों की कथा भी अनन्त है। काशी में केवल इतनी ही गलियाँ नहीं है जिनकी चर्चा ऊपर की गई है बल्कि ये तो तंत्रिका तन्त्र की तरह सम्पूर्ण काशी के शरीर में फैली हैं। सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति को एक सीमित क्षेत्र में वेष्ठित कर प्रकाश बिम्ब की तरह चमत्कृत करने वाली काशी की ये गलियाँ, केवल भारत में ही नहीं, वरन् विश्व में चर्चा का विषय बन गई हैं। इन गलियों में धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक जीवन की झ्ााँकी देखकर मन मन्त्रमुग्ध हो जाता है। तभी तो ‘भैया जी बनारसी’ कहते हैं-
संकरी अगम गुहा गहृर सी दुर्गम दुर्ग छली
सूरज की जो छांह न पावे ऐसी अतल तली
गली नहीं यह शायद लैला की होगी उंगली
अथवा काव्य नायिका की यह कमर सुघर पतली
इहाँ उहाँ दुई गलियन देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।।
देखि गली हमहूँ अकुलानी। बनारसी देखि मधुर मुसकानी।।
इन गलियों से गुजरते समय जहाँ चूके तुरन्त ही दूसरी गली में आ पहुचेंगे क्योंकि यहाँ कोई निशान या साइनबोर्ड लगा नहीं मिलेगा। नतीजा यह होगा कि काफी दूर आगे जाने पर रास्ता बन्द मिलेगा। कभी-कभी तो तुरन्त सड़क आ सकती है। यदि रास्ता भूल गये तो उन्हीं गलियों में कई घंटे तक घूमते रहेंगे। आपकी इस दुविधा का आनन्द वहाँ के क्षेत्रीय बनारसी लेते हैं और आपकी ओर वे इस तरह देखेंगे कि यह इधर बन्द गली में कहाँ जा रहा है नतीजा आपको पुनः उसी गली तक वापस आना होगा जहाँ से आप भ्रमित होकर भटक गये थे। कई गलियाँ तो अपने नाम और रूप से इतनी भयानक होती हैं कि भयानक और शांत रस दोनों का एक साथ मजा देती है।
आपको जिस गली में इमली के बीज बिखरे मिलें समझ्ा लें इस गली में मद्रासी रहते हैं। जिस गली में मछली महकती हो वहाँ बंगालियों का मोहल्ला है। जिस मे हड्डी लुढ़की मिले समझिये मुसलमानी इलाका है। इस प्रकार हर गली की अपनी पहचान है, इतना पकवान है बस पारखी नजर आपके पास होनी चाहिए। इन अद्भुत गलियों के अद्भुत नाम भी हैं यथा-
दस पुतरिया गली, भण्डारी गली, चूहा गली, ऊंचवा गली, दादुल गली, नारायण दीक्षित लेन, सूतटोला, ढुनमुन पंडा गली, रतन फाटक गली, बंगाली बाड़ा, भाट गली, गणेश दीक्षित लेन, पाटन गली, संतोषी माता गली, राजराजेश्वरी गली, पाण्डेय गली, केदार गली, मिसिर गली, कोहराने गली, सोना साव वाली गली, बीबी हटिया गली, दलहट्टा गली, दण्डपाणि गली।
इन सभी गलियों में आपको विश्व के सभी जाति धर्म के लोग तो मिलेंगे ही साथ ही विश्व का ऐसा कोई व्यवसाय या सामान नहीं हो सकता जो न मिल सके। इसलिए डॉ0 रामअवतार पाण्डेय जी कहते हैं-
वरूणा और अस्सी के भीतर है, अनुपम विस्तार बनारस।
विविध धर्म भाषा-भाषी, रहते ज्यों परिवार बनारस।।
जिसकी गली-गली में बसता है, सारा संसार बनारस।
एक बार जो आ बस जाता, कहता इसे हमार बनारस।।
‘‘हरिअनन्त हरिकथा अनन्ता’’ की भाँति काशी की गलियों की कथा भी अनन्त है। काशी में केवल इतनी ही गलियाँ नहीं है जिनकी चर्चा ऊपर की गई है बल्कि ये तो तंत्रिका तन्त्र की तरह सम्पूर्ण काशी के शरीर में फैली हैं। सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति को एक सीमित क्षेत्र में वेष्ठित कर प्रकाश बिम्ब की तरह चमत्कृत करने वाली काशी की ये गलियाँ, केवल भारत में ही नहीं, वरन् विश्व में चर्चा का विषय बन गई हैं। इन गलियों में धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक जीवन की झ्ााँकी देखकर मन मन्त्रमुग्ध हो जाता है। तभी तो ‘भैया जी बनारसी’ कहते हैं-
संकरी अगम गुहा गहृर सी दुर्गम दुर्ग छली
सूरज की जो छांह न पावे ऐसी अतल तली
गली नहीं यह शायद लैला की होगी उंगली
अथवा काव्य नायिका की यह कमर सुघर पतली